ख़लिश बांकी रह गयी

“हमारी तो गाली पर भी ताली पड़ती है”

सही बात कह गये बड़े भाई जान ….आपकी बात ही कुछ ऐसी थी की जो कह जाते …वही quotation बन जाता…

क्योंकि आप इकलौते शख़्श थे जिनकी शख़्सियत शब्दों को वजन देती थी …जिनका अंदाज़ शब्दों को नया वज़ूद देता था …

और कई बार तो शब्दों की ज़रूरत भी नही पड़ती थी …आँखें ही कह जाती थी …

वक्फा जो मायना देता था …अब खुद मायना ढूँढने चला गया …

चाहा तो नही था …ये मेरी चाहत थी ….मगर जो आपकी चाहत थी …

“इक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा … ना दिल में कसक होगी, ना सर में जुनून होगा”

वो आज पा लिया आपने …

मगर शिकायत यही है की इतनी भी क्या जल्दी थी…..फिर भी…खुदा हाफ़िज़ …ख़लिश ही रह गयी आपके साथ काम करने की …

We are waiting ….Irrfan Khan …

2 Replies to “ख़लिश बांकी रह गयी”

Leave a Reply to Sweta Mishra Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *