सफ़ा

चले हैं धरती पे बसे शहरों को साफ़ करने,

अभी तो अपने अंदर बसे शहर को टटोला भी नही

आज़ादी सस्ती है ?

जब भी हो गुमान
या चाहत हो शिकायत करने की
नज़र उठाकर चोटियों पे देख लेना
कुछ लोग दिखेंगे बंदूक लिए , बर्फ से घिरे
या खुद को तैनात किए जानवरों के बीच
जिनके पास निजी कई मसले हैं
पर फ़र्ज़ से बड़ा ना मसला है ,ना खुशी का कारण
गर और कुछ याद ना रहे
तो ध्यान रखना सिर्फ़ एक
उनकी एक चूक महँगी है !!!!
 
और हम अपनी आज़ादी कितनी सस्ती मान लेते हैं

Couplets

कुछ तो इंसानियत बाकी रह गयी

वरना यूँ रिश्तों से मरहूम ना होते

कोई दिन और….

लफ़्ज़ों में तपिश चाहिए;
लिखना फसाना, कोई दिन और

गैरों के आगे पड़ा झुकाना सर;
अपनों ने कह दिया था, कोई दिन और

वज़न ढूँढने चले थे हम;
अल्फाज़ों ने चुपके से कहा, कोई दिन और

अंदाज़ अपना भी अलग है यारों;
कोई रोके तो हम कहते, कोई दिन और

ग़ालिब से अपनी पुरानी पहचान;
मीर से कहो, कोई दिन और

लफ़्ज़ों में तपिश चाहिए;
लिखना फसाना, कोई दिन और

गैरों के आगे पड़ा झुकाना सर;
अपनों ने कह दिया था, कोई दिन और

वज़न ढूँढने चले थे हम;
अल्फाज़ों ने चुपके से कहा, कोई दिन और

अंदाज़ अपना भी अलग है यारों;
कोई रोके तो हम कहते, कोई दिन और

ग़ालिब से अपनी पुरानी पहचान;
मीर से कहो, कोई दिन और