चले हैं धरती पे बसे शहरों को साफ़ करने,
अभी तो अपने अंदर बसे शहर को टटोला भी नही
Freelance Script Writer and Director
चले हैं धरती पे बसे शहरों को साफ़ करने,
अभी तो अपने अंदर बसे शहर को टटोला भी नही
जब भी हो गुमान या चाहत हो शिकायत करने की नज़र उठाकर चोटियों पे देख लेना कुछ लोग दिखेंगे बंदूक लिए , बर्फ से घिरे या खुद को तैनात किए जानवरों के बीच जिनके पास निजी कई मसले हैं पर फ़र्ज़ से बड़ा ना मसला है ,ना खुशी का कारण गर और कुछ याद ना रहे तो ध्यान रखना सिर्फ़ एक उनकी एक चूक महँगी है !!!! और हम अपनी आज़ादी कितनी सस्ती मान लेते हैं
कुछ कहानियाँ कभी पूरी नही होती…
और कुछ कभी शुरू नही होती
फिर भी
होती तो हैं…कहानियाँ
कुछ तो इंसानियत बाकी रह गयी
वरना यूँ रिश्तों से मरहूम ना होते
लफ़्ज़ों में तपिश चाहिए; लिखना फसाना, कोई दिन और गैरों के आगे पड़ा झुकाना सर; अपनों ने कह दिया था, कोई दिन और वज़न ढूँढने चले थे हम; अल्फाज़ों ने चुपके से कहा, कोई दिन और अंदाज़ अपना भी अलग है यारों; कोई रोके तो हम कहते, कोई दिन और ग़ालिब से अपनी पुरानी पहचान; मीर से कहो, कोई दिन और
लफ़्ज़ों में तपिश चाहिए; लिखना फसाना, कोई दिन और गैरों के आगे पड़ा झुकाना सर; अपनों ने कह दिया था, कोई दिन और वज़न ढूँढने चले थे हम; अल्फाज़ों ने चुपके से कहा, कोई दिन और अंदाज़ अपना भी अलग है यारों; कोई रोके तो हम कहते, कोई दिन और ग़ालिब से अपनी पुरानी पहचान; मीर से कहो, कोई दिन और